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गोंडा: स्टे के बावजूद कोटेदार ने बांटा खाद्यान्न, आपत्ति जताने पर दूसरे कोटेदार से मारपीट; डीएम ने दिए जांच के आदेश
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गोंडा: स्टे के बावजूद कोटेदार ने बांटा खाद्यान्न, आपत्ति जताने पर दूसरे कोटेदार से मारपीट; डीएम ने दिए जांच के आदेश

गोंडा: जिले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को लेकर एक गंभीर प्रशासनिक विवाद सामने आया है। जानकारी के अनुसार, स्टे आदेश के बावजूद कोटेदार राजेश कुमार ने अवैध रूप से खाद्यान्न का वितरण किया। जब दूसरे कोटेदार ने इसका विरोध किया तो उसके साथ मारपीट की गई।

यह मामला सामने आने के बाद जिलाधिकारी (DM) ने पूरे प्रकरण की जांच के आदेश दिए हैं और संबंधित अधिकारियों से रिपोर्ट तलब की है।


⚖️ स्टे आदेश के बावजूद वितरण क्यों?

मामला करनैलगंज तहसील से जुड़ा है, जहां के एसडीएम ने कोटेदार राजेश कुमार के खिलाफ स्टे ऑर्डर जारी किया था। इसके बावजूद खाद्य एवं रसद विभाग के उपायुक्त ने उसे खाद्यान्न वितरण करने की मौखिक अनुमति दी।

सूत्रों के अनुसार, यह आदेश बिना एसडीएम की जानकारी और स्थानीय प्रशासन की सहमति के जारी किया गया, जिससे विवाद और गहरा गया।


👊 विरोध करने पर मारपीट का आरोप:

जब दूसरे कोटेदार (जिनकी पहचान जगतपाल के रूप में हुई है) ने इस पर आपत्ति जताई और वितरण पर रोक लगाने की मांग की, तो राजेश कुमार और उसके सहयोगियों ने कथित तौर पर उनके साथ गाली-गलौज और धक्का-मुक्की की

पीड़ित कोटेदार ने थाने में शिकायत दी है और सुरक्षा की मांग की है।


👨‍💼 डीएम का हस्तक्षेप:

जिलाधिकारी गोंडा ने मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा:

“प्रथम दृष्टया आदेशों की अवहेलना और शासकीय प्रक्रिया के उल्लंघन का मामला प्रतीत हो रहा है। पूरे प्रकरण की जांच एक वरिष्ठ अधिकारी से कराई जाएगी। दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।”


📋 प्रशासनिक भ्रम और नियमों की अनदेखी:

इस मामले ने एक बार फिर से खाद्यान्न वितरण प्रणाली की पारदर्शिता और प्रशासनिक समन्वय पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

  • एक तरफ तहसील प्रशासन स्टे ऑर्डर जारी करता है,

  • दूसरी तरफ खाद्य उपायुक्त वितरण की मौखिक अनुमति दे देते हैं,

  • और इसका परिणाम झगड़े व अव्यवस्था के रूप में सामने आता है।


🔚 निष्कर्ष:

गोंडा में कोटेदार विवाद सिर्फ एक व्यक्ति विशेष की गलती नहीं, बल्कि यह प्रशासनिक असंतुलन और पारदर्शिता की कमी का उदाहरण है। यदि ऐसे मामलों में स्पष्ट और एकमत निर्णय न लिए जाएं तो PDS जैसी संवेदनशील योजना पर जनता का भरोसा टूट सकता है। अब देखना है कि जांच में क्या सामने आता है और क्या दोषियों पर सख्त कार्रवाई होती है।

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