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भीलवाड़ा मास्टर प्लान-2035 पर मचा बवाल: 12 गांवों की जमीन जाएगी, किसानों को नहीं जानकारी; प्रॉपर्टी डीलर्स और ग्रामीणों ने जताया विरोध

भीलवाड़ा (राजस्थान): भीलवाड़ा में नगर विकास न्यास (UIT) द्वारा प्रस्तावित मास्टर प्लान-2035 ने बवाल खड़ा कर दिया है। शहर से सटे 12 गांवों की सैकड़ों बीघा जमीन इस प्लान की जद में आ सकती है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि न तो किसानों को यह जानकारी है कि उनकी कितनी जमीन जाएगी और न ही उन्हें उचित मुआवजा मिला है।

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, वर्ष 2005 में भीलवाड़ा और उससे सटे गांवों के लिए मास्टर प्लान तैयार किया गया था, जिसे 25 अक्टूबर 2016 को राज्य सरकार से मंजूरी मिली। अब UIT इसमें संशोधन कर नया मास्टर प्लान-2035 ला रही है। लेकिन इस प्लान में जो नक्शा जारी किया गया है, उसमें आराजी (खसरा) नंबर तक नहीं दर्शाए गए हैं। इससे किसानों को यह भी नहीं पता चल रहा कि किसकी जमीन प्लान में शामिल है।

कौन-कौन से गांव प्रभावित होंगे?

पालड़ी, इंद्रपुरा, तेली खेड़ा, गोविंदपुरा, देवखेड़ी, आरजिया, जाटों का खेड़ा, सालरिया, तस्वारिया, केसरपुरा, सांगानेर समेत 12 गांव इस प्लान से प्रभावित बताए जा रहे हैं।

किसान और डीलर कर रहे विरोध

किसानों और प्रॉपर्टी डीलर एसोसिएशन का आरोप है कि:

  • किसानों को 12 साल बाद भी मुआवजा नहीं मिला।

  • प्रस्तावित प्लान में पारदर्शिता नहीं है।

  • सरकारी नियमों को ताक पर रखकर फैसले लिए जा रहे हैं।

एसोसिएशन के विधि प्रभारी राजकुमार टेलर ने कहा, “मास्टर प्लान में जिस तरह से छेड़छाड़ की गई है, उससे किसानों की जमीनें बिना पारदर्शिता के ली जा रही हैं। 12 साल से मुआवजा लंबित है और अधिकारी किसानों को जयपुर और भीलवाड़ा के चक्कर लगवा रहे हैं।”

क्या बोले नगर नियोजक?

जब इस मुद्दे पर NDTV ने नगर नियोजक से बात की तो उन्होंने कहा,

“हमने ऑनलाइन आपत्तियां मांगी हैं। अगर कोई गलती है तो सुधार के लिए समिति बना दी गई है। मास्टर प्लान में आराजी नंबर नहीं दर्शाए जाते। यह नियम अनुसार है।”

मुद्दे की जड़ में क्या?

  • जमीन अधिग्रहण का स्पष्ट खाका नहीं।

  • नक्शों में अस्पष्टता, जिससे किसान भ्रमित हैं।

  • UIT द्वारा प्रस्तावित जो़नल प्लान ई-2 में जरूरी विवरण गायब।

  • किसान विकास विरोधी नहीं, लेकिन पारदर्शिता और मुआवजा की मांग कर रहे हैं।


निष्कर्ष:

भीलवाड़ा में मास्टर प्लान-2035 को लेकर उठे सवाल केवल योजना तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह सरकार और नागरिकों के बीच संवाद की कमी को उजागर करते हैं। किसानों की जमीन जाना एक संवेदनशील मुद्दा है और इसमें पारदर्शिता, समय पर मुआवजा और स्पष्ट नक्शा जरूरी है। वरना यह योजना विकास के बजाय विवाद बन जाएगी।

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